गुड़ी पड़वा: नववर्ष का शुभारंभ
"नवसंवत्सराय शुभमस्तु, जयतु हिंदू संस्कृतिः।"
गुड़ी पड़वा, महाराष्ट्र और गोवा में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है, जो हिंदू नववर्ष के आगमन का प्रतीक है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है और इसे विक्रम संवत के प्रारंभ का शुभ अवसर माना जाता है। इस दिन भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे कि कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में युगादि, सिंधी समाज में चेटीचंड, और उत्तर भारत में विक्रम संवत प्रारंभ।
गुड़ी पड़वा का महत्व :-
गुड़ी पड़वा को भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना का दिवस माना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था और सतयुग का आरंभ हुआ था। साथ ही, यह पर्व मराठा वीरता और छत्रपति शिवाजी महाराज की विजय का भी प्रतीक है, जो इस दिन अपनी विजयों को चिह्नित करने के लिए गुड़ी स्थापित करते थे।
गुड़ी पड़वा की परंपराएँ :-
गुड़ी स्थापना :- इस दिन घरों के आंगन में बाँस की लकड़ी पर चमकीला कपड़ा, आम के पत्ते और फूलों की माला बाँधकर उसके ऊपर एक तांबे या पीतल का कलश रखा जाता है। इसे ही 'गुड़ी' कहा जाता है, जो समृद्धि और विजय का प्रतीक मानी जाती है ।
घर की सफाई और रंगोली :- इस दिन घरों की विशेष सफाई की जाती है और दरवाजों पर रंग-बिरंगी रंगोलियाँ बनाई जाती हैं ।
विशेष पूजा-अर्चना :- भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और अन्य देवी-देवताओं की विशेष पूजा की जाती है ।
पकवानों का आनंद :- इस दिन पूरनपोली, श्रीखंड-पूरी और अन्य पारंपरिक मिठाइयाँ बनाई जाती हैं ।
गुड़ी पड़वा का आध्यात्मिक संदेश
गुड़ी पड़वा हमें जीवन में नए अवसरों को अपनाने, सकारात्मकता बनाए रखने और धर्म व संस्कृति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि हर नया वर्ष हमें नई संभावनाएँ और नई ऊर्जा प्रदान करता है।
"तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।"
निष्कर्ष :-
गुड़ी पड़वा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और गौरवशाली परंपराओं का प्रतीक है। यह हमें न केवल नववर्ष के आगमन की खुशी देता है, बल्कि हमें अपने इतिहास और धर्म से जोड़ता है। आइए, इस पावन पर्व पर हम सभी मिलकर सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें