नव संवत्सर: एक नई ऊर्जा का उत्सव
"नववर्ष शुभमस्तु ते, सर्वेषां मंगलम भवेत्।"
नव संवत्सर हिंदू पंचांग के अनुसार नए वर्ष की शुरुआत का पावन पर्व है। यह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है और इसी दिन से विक्रम संवत का आरंभ भी माना जाता है। यह दिन प्रकृति, धर्म और आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है, जो हमें एक नई ऊर्जा और सकारात्मकता के साथ जीवन में आगे बढ़ने का संदेश देता है।
नव संवत्सर का महत्व
नव संवत्सर का दिन केवल नए वर्ष का आरंभ ही नहीं, बल्कि हमारे धार्मिक और ऐतिहासिक संदर्भों में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है :-
भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना – मान्यता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था।
विक्रम संवत की शुरुआत – इस दिन महाराज विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की स्थापना की थी, जो आज भी भारत में पारंपरिक पंचांग के रूप में उपयोग किया जाता है।
नवरात्रि का शुभारंभ – इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ होता है, जो माँ दुर्गा की उपासना का पर्व है।
नव संवत्सर की परंपराएँ
मंदिरों और घरों की विशेष सफाई एवं सजावट – इस दिन घरों और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
ध्वज (गुड़ी) स्थापना – महाराष्ट्र और कई अन्य स्थानों पर विजय और समृद्धि के प्रतीक स्वरूप ध्वज (गुड़ी) फहराने की परंपरा है।
विशेष हवन और पूजा – इस दिन हवन और विशेष प्रार्थनाएँ की जाती हैं ताकि वर्षभर सुख-शांति बनी रहे।
नए संकल्प और अच्छे कार्यों की शुरुआत – नव संवत्सर को नए संकल्प लेने और धार्मिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक उत्थान की दिशा में कदम बढ़ाने का आदर्श समय माना जाता है।
नव संवत्सर का आध्यात्मिक संदेश
नव संवत्सर हमें यह सिखाता है कि जीवन में हर नया वर्ष एक नई शुरुआत का अवसर होता है। यह हमें धर्म, संस्कार और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्।।"
निष्कर्ष
नव संवत्सर केवल पंचांग का एक नया पृष्ठ नहीं, बल्कि जीवन में नई ऊर्जा, नए संकल्प और नई उमंग के साथ आगे बढ़ने का प्रतीक है। आइए, इस नववर्ष पर हम सभी अपने जीवन को सकारात्मकता, आध्यात्मिकता और सेवा भाव से भरने का संकल्प लें।
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