।। श्रीहरि: ।।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी।
हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं।
योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम।।३।।
(गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्र से)
भावार्थ-
जिनके सहारे यह विश्व टिका है, जिन्होने इसकी रचना की है और जो स्वयं ही इसके रूप में प्रकट हैं- फिर भी जो इस दृश्य जगत से एवं इसकी कारणभूता प्रकृति से सर्वथा परे (विलक्षण) एवं श्रेष्ठ हैं- उन अपने- भगवान की मैं शरण लेता हूं।
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।
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