अग्नि वेदाश्चत्वारो मीमांसा न्याय विस्तरः।
पुराणं धर्मशास्त्रं च विद्या ह्याताश्चर्तुदश ।।
विभूति योग आयुर्वेदा धनुर्वेदो गान्धर्वश्चैव ते त्रयः।
अर्थशास्त्रं चतुर्थं तु विद्या ह्यष्टादशैव ताः ।। (विष्णु पुराण-3.6.27.28)
"शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्ति, ज्योतिष और छंद, ये छः प्रकार की विद्याओं को वेदों का अंग कहा जाता है। ऋग, यजुर, साम, अथर्व ये वैदिक ज्ञान की चार शाखाएँ हैं। मीमांसा, न्याय, धर्म शास्त्र और पुराणों सहित प्रमुख चौदह विद्याएँ हैं।"
इन विद्याओं का अभ्यास बुद्धि, दिव्य ज्ञान और धर्म के मार्ग के प्रति जागरूकता को बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त आध्यत्मिक ज्ञान मनुष्य को माया के बंधनों से मुक्त कर उसे अमरत्व प्रदान करता है। इस प्रकार से यह पहले उल्लिखित विद्याओं में सर्वोत्कृष्ट है। श्रीमद्भागवतम् में भी इसका उल्लेख किया गया है ...
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