26 फ़र॰ 2025

Maha Shivratri Editorial

महाशिवरात्रि: आत्मचिंतन और जागरण का पर्व :- 
हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा भी है। यह पर्व हमें आत्मनिरीक्षण, साधना और जागरूकता की प्रेरणा देता है। भगवान शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक दर्शन हैं—संहार और सृजन के संतुलन का प्रतीक।

आध्यात्मिकता से जुड़ने का अवसर :- 

महाशिवरात्रि का महत्व केवल व्रत रखने या रात्रि जागरण करने तक सीमित नहीं है। यह रात आत्मचिंतन की है, जब हम अपनी सीमाओं से परे जाकर ईश्वर की अनंतता का अनुभव कर सकते हैं। भारतीय दर्शन में शिव को "अद्वैत", यानी निराकार चेतना का प्रतीक माना जाता है। उनका ध्यान करना केवल धर्म का पालन करना नहीं, बल्कि स्वयं को पहचानने की प्रक्रिया भी है।

इस दिन शिवलिंग की पूजा का अर्थ केवल कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांड की ऊर्जा और चेतना को नमन करने का एक तरीका है। शिवलिंग उस अनंत ऊर्जा का प्रतीक है, जिससे सृष्टि का निर्माण हुआ और जिसमें वह अंततः विलीन होती है।

समाज और संस्कृति पर प्रभाव :- 

भारत में महाशिवरात्रि सामाजिक समरसता का पर्व भी है। इस दिन जाति, पंथ और वर्ग से ऊपर उठकर लोग एकजुट होकर भगवान शिव की उपासना करते हैं। शिव, जो स्वयं गृहस्थ और संन्यासी दोनों ही रूपों में स्वीकार्य हैं, हमें यह सिखाते हैं कि संतुलन ही जीवन का मूल तत्व है।

आज के समय में जब समाज बँटाव, तनाव और असंतोष से ग्रस्त है, तब शिव का दर्शन हमें सिखाता है कि जीवन में विनाश और सृजन साथ-साथ चलते हैं। हर समस्या के बाद समाधान आता है और हर अंधकार के बाद प्रकाश का उदय होता है।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में महाशिवरात्रि :- 

विज्ञान भी अब यह स्वीकार करता है कि महाशिवरात्रि की रात विशेष ऊर्जा से भरपूर होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इस दिन पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति कुछ ऐसी होती है कि ध्यान, साधना और योग का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। यही कारण है कि भारत में कई स्थानों पर पूरी रात ध्यान और भजन-संकीर्तन किया जाता है।

आज जब दुनिया तनाव, चिंता और मानसिक विकारों से जूझ रही है, तब महाशिवरात्रि हमें आंतरिक शांति और संतुलन की राह दिखाती है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि मानवता के उत्थान का मार्ग भी है।

निष्कर्ष :- 

महाशिवरात्रि केवल उपवास, पूजा और जागरण का पर्व नहीं, बल्कि आत्मबोध और जागरूकता का भी उत्सव है। यह हमें यह समझने का अवसर देता है कि शिव हर कण में व्याप्त हैं—हमारी चेतना में, हमारे विचारों में, और हमारे कर्मों में।

इस महाशिवरात्रि पर, हम केवल भगवान शिव की आराधना ही न करें, बल्कि उनके जीवन दर्शन से कुछ सीखें—संतुलन बनाए रखें, आत्मचिंतन करें और जीवन के हर उतार-चढ़ाव को सहजता से स्वीकार करें।

हर हर महादेव!

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